दोहा दशम . . . क्रोध
दोहा दशम . . . क्रोध
जितना संभव हो सके , वश में रखना क्रोध ।
घातक होते हैं बड़े, क्रोध जनित प्रतिशोध ।1।
देना अपने क्रोध को, पल भर का विश्राम ।
टल जाएंगे शूल से, क्रोध जनित परिणाम ।2।
शमन क्रोध का कीजिए, मिटता बैर समूल ।
प्रेम भाव की जिंदगी, माने यही उसूल ।3।
रिश्ते होते खाक जब, जले क्रोध की आग ।
प्रेम विला में गूँजते, फिर नफरत के राग ।4।
क्रोध बैर का मूल है, क्रोध घृणा की आग ।
क्रोध अनल के कब मिटे, अन्तर्मन से दाग ।5।
भला क्रोध का क्रोध से, कब होता उपचार ।
क्रोध वेग से हो सदा, रिश्तों का संहार ।6।
पात प्रेम के सब जले, कुपित हुए सम्बंध ।
क्रोध अनल में जल गई, प्रेम सुवासित गंध ।7।
क्रोधी का हो क्रोध में, पहले नष्ट विवेक ।
फिर क्रोध के पाश में , करता पाप अनेक ।8।
क्रोधी को कब क्रोध में, होता कुछ भी बोध ।
वो तो हरदम चाहता , लेना बस प्रतिशोध ।9।
क्रोधी हरदम क्रोध से, खुद जलता सौ बार ।
क्रोध पृष्ठ पर है लिखी, सिर्फ हार ही हार ।10।
सुशील सरना / 23-11-24