दोहा त्रयी. . . .
दोहा त्रयी. . . .
दिख जाएगी देख तू , तुझको अपनी भूल ।
मन के दर्पण से हटा , जमी स्वार्थ की धूल ।।
भेद बढ़ाती प्यार में, बेमतलब की रार ।
अक्सर खोता रार में, जीवन का शृंगार ।।
मुदित नयन से कब हुई, गहन तिमिर की रात।
भ्रम तिमिर का तोड़ता, हर पल मौन प्रभात ।।
सुशील सरना / 9-12-24