दोहा त्रयी. . . .
दोहा त्रयी. . . .
चश्मा जैसा आँख पर, वैसा जीवन सार ।
जैसी चाहें जिंदगी, दें वैसा आकार ।।
जैसा चाहे आदमी , वैसा नहीं संसार ।
अवगुंठन में प्रीति के, छल होता हर बार ।।
बहते जल पर कब हुआ, काई का अस्तित्व ।
यही भाव निखारता , मानव का व्यक्तित्व ।।
सुशील सरना / 9-10-24