दोहा त्रयी. . . . .
दोहा त्रयी. . . . .
मर्यादा की तोड़ते , सम्बोधन प्राचीर ।
सम्बन्धों में भर दिया, नवयुग ने अब नीर ।।
शब्द शरों से भेदते,दिल को अपने मीत ।
दे कर दिल को वेदना, खूब मनाते जीत ।।
अर्थ अश्व पर आज का, युवा रहा है दौड़ ।
अपनों का इस दौड़ में, खो जाता हर मोड़ ।।
सुशील सरना / 26-7-24