दोहा त्रयी. . . . .
दोहा त्रयी. . . . .
जग की सारी बन्दिशें, चलो तोड़ दें आज ।
दे दें अपने प्यार को, प्यार भरी आवाज ।।
सुर्ख कपोलों पर हुए, चित्रित कुछ संवाद ।
स्पर्शों के दौर के , मुखर हुए उन्माद ।।
मेघों से कैसे कहूँ, विरही मन की बात ।
पिया न आयें जब तलक , रुकी रहे बरसात ।।
सुशील सरना / 22-6-24