दोहा त्रयी. . . . शीत
दोहा त्रयी. . . .
ठंड पोष की झेलना , मुश्किल है श्रीमान ।
उस पर ठंडी ओस में, थर – थर काँपे जान ।।
सूरज को भी लग रही, इस मौसम में ठण्ड ।
उस पर तेवर धुंध के, कितने हुए प्रचंड ।।
अद्भुत लगता ओस में, लिपटा हुआ उजास ।
जीवन ठिठुरा देखता, स्वर्ण रश्मि का रास ।।
सुशील सरना / 3-1-24