दोहा गीत
दोहा गीत
विरह अग्नि में जल रहा,शुभगे!आठो याम।
साँसें चलती हैं प्रिये,लेकर तेरा नाम।।
कठिन विरह की वेदना,विकल हृदय की पीर।
धीरज मन धरता नही,रहता सदा अधीर।।
प्रणय मिलन की याद ने,किया बहुत बेचैन।
काटे से कटता नहीं,प्रिये!दिवस अरु रैन।।
अश्रुधार बहती सदा,नयनों से अविराम।
विरह अग्नि——–
नींद नहीं आती मुझे,होकर तुमसे दूर।
किया जुदाई ने मुझे,प्रतिपल ही मजबूर।।
लुप्तप्राय सब हो गए,सुखद प्रणय के फूल।
हृदय गेह में चुभ रहे,तीक्ष्ण विरह के शूल।।
दुख पर भी लगता नहीं,कोई अल्प विराम।
विरह अग्नि—–
हरगिज मिट सकता नहीं,तेरा-मेरा मोह।
सहन नहीं होता प्रिये,मुझसे कठिन विछोह।।
अमर प्रीत के बन गए,दुश्मन यहाँ हजार।
हार सकेगा पर नहीं,अपना पावन प्यार।।
तुम्हीं प्यार की रागिनी,तुम ही चारो धाम।
विरह अग्नि——
कृष्णा श्रीवास्तव
हाटा,कुशीनगर