दोहा – कहें सुधीर कविराय
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राम, हनुमान, रावण
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अति बलशाली वीर हैं, महावीर हनुमान।
राम कृपा मुझ पर रहे, ऐसा दो वरदान।।
पवन तनय मेरी सुनो, इतनी सी फरियाद।
आप और प्रभु राम जी, रखना मुझको याद।।
मारुति नंदन नाम है, बालवीर हनुमान।
भक्तों पर करिए कृपा, रहे मान सम्मान॥
तुम सेवक प्रभु राम के, लीला बड़ी अनंत।
चरण-शरण की कामना, पूर्ण करो हनुमंत॥
विनय हमारी आप से, सुनो रुद्र अवतार।
पाप पुण्य जानूँ नहीं, देना मुझको तार।।
राम दूत हनुमानजी, हर लेते सब कष्ट।
नाम सुमिरता आपका , संकट होते नष्ट।।
राम भक्त हनुमान जी, करते सदा सहाय।
भूत प्रेत सब दूर से, करते रहते हाय।।
भक्त श्रेष्ठवर आप हैं, प्रभु जी हनुमत आप।
पवनपुत्र जी आप ही, हर लो मेरे पाप।।
लंका जारी आपने, सीता माँ को खोज।
जमकर तांडव संग में, किया वाटिका भोज।।
लंका तक थे तुम गये, करने प्रभु का काम।
रावण को बतला दिया, हनुमत मेरा नाम।।
राम सहारे मैं रहा, रामहिं मम आधार।
बस इतना ही जानिए, मेरा जीवन सार।।
राम खजाना चाहिए, रटो राम का नाम।
यदि मन में विश्वास तो, बन जायें सब काम।।
राम भक्ति का है नशा, चढ़ा आप के शीष।
लख सिंदुरी यह बदन, पाओ माँ आशीष।।
संकट मोचक आ हरो ,सबके मन की पीर।
जाप आपका जो करे, होये नहीं अधीर।।
विपदा हरते आप हैं, करते पूरण काज।
राह दिखाते हैं सदा, रखते सबकी लाज।।
लंका तक थे तुम गये, करने प्रभु का काम।
रावण को बतला दिया, हनुमत मेरा नाम।।
राम सहारे मैं रहा, रामहिं मम आधार।
बस इतना ही जानिए, मेरा जीवन सार।।
सदा सुमिरते राम को, जो जो आठों याम।
रक्षा उनकी खुद करें, सबके दाता राम।।
जिह्वा रटती ही रहे, प्रभु राम का नाम।
पूरी हो हर कामना, और राम का धाम।।
पवनपुत्र हनुमान जी, मुझको भी दो ज्ञान।
सियाराम के नाम का, कैसा है विज्ञान।।
विनय करूँ कर जोर मैं, माँ अंजनि के लाल।
क्षमा दान अब दीजिए, हाल हुआ बेहाल।।
दिल में जिसके था छपा, सियाराम का चित्र।
सीना चीर दिखा दिया, कैसे कहें विचित्र।।
शरण आपके आ गया, अब तो दे दो ध्यान।
विनती इतनी मैं करूँ, कर दो मम कल्याण।।
हृदय बसाओ राम को,धरो पवनसुत ध्यान।
मिले कृपा तब राम की, करिए हनुमत गान।।
शिव अंशी अवतार हो, रूद्र कहाते आप।
सूर्य गुरु हैं आपके, दुष्ट रहे सब कांप।।
संकट हो कितना बड़ा, कर हनुमत का ध्यान।
राम दास हनुमान का, अद्भुत है विज्ञान।।
संकट में जो जप करें, पवन पुत्र का नाम।
मिलती है हनुमत कृपा बन जाते सब काम।।
हनुमत का सुमिरन करो, राम कृपा मिल जाय।
भक्त राम के चाहते, सबके राम सहाय।।
श्री हनुमत शनिदेव जी, कृपा कीजिए आप।
मिट जाएं मेरे सभी, रोग शोक संताप।।
आप सभी हम जानते, तुलसी हुए महान।
उन्हें बोध जब हो गया, राम कृपा का ज्ञान।।
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आजादी
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आजादी आजाद है, कैसे लूँ मैं मान।
कुर्बानी के बाद ही, आजादी की शान।।
आजादी पर आपका, केवल है अधिकार।
क्यों बनते मिट्ठू मियां, है बेकार विचार।।
आभारी हम आपके, आजादी के नाम।
कुर्बानी दी आपने, किया बड़ा है काम।।
चालाकी से कब मिली, खुशियों की सौगात।
आजादी कब खेल थी, या बच्चों की घात।।
आजादी का हो रहा, नित प्रति ही अपमान।
वीर शहीदों को लगे, यह कैसा सम्मान।।
आता है जिनको नहीं, आजादी का अर्थ।
कुर्बानी का अर्थ भी, उसे लग रहा व्यर्थ।।
आजादी हित में दिया, उसने जो बलिदान।
मिलना जैसा चाहिए, मिला नहीं सम्मान।।
वीरों के बलिदान की, आजादी सौगात।
कितनों का लगती भली, इतनी सीधी बात।।
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गुरु
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दिवस गुरू का आज है, जो देता गुरु ज्ञान।
उसी ज्ञान में है छिपा, हम सबका कल्याण।।
नित्य बृहस्पति देव का, सुमिरन करिए आप।
हरते गुरुवर देव हैं, मन के सब संताप।।
शरणागत गुरुदेव के, जिनके जागे भाग्य।
होता है सबका नहीं, यह सुंदर सौभाग्य।।
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नागपंचमी
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नाग देवता कीजिए, रक्षा अपनी आप।
संग दया भी कीजिए, नहीं दीजिए शाप।।
नाग देवता हैं डरे, नागपंचमी आज।
मानव अब करने लगा, कैसे कैसे काज।।
अपना बनकर डस रहे, नाग बने कुछ लोग।
इनसे डरते नाग भी, यह कैसा दुर्योग।।
नाग मनुज से कह रहे, मुझे बख्श दो मित्र।
विनती मेरी भी सुनो, मत खींचो तुम चित्र।।
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मायावी
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मानव मायावी हुआ, कैसे हो विश्वास।
लें पहले विश्वास में, बाद तोड़ते आस।।
मायावी दुनिया हुई, नित्य दिखाए खेल।
सीधे साधे लोग जो, वे ही होते फेल।।
मायावी संसार में, तरह-तरह के लोग।
लाख छुड़ाते पिंड हैं, नहीं छूटता रोग।।
माया के संसार में, है रावण का राज।
राम नाम की आड़ ले, करते रावण काज।।
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विविध
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निंदा नफ़रत द्वेष को, मन से रखिए दूर।
जीवन में तब हो सदा, खुशहाली भरपूर।।
नीति नियम अरु कर्म का, नहीं दीजिए ज्ञान।
पहले आप सुधारिए, निज जीवन विज्ञान।।
खुद में अर्जित कीजिए, आत्मशक्ति विश्वास।
पूरी हो तब साधना, और आपकी आस।।
भोर किरण का लीजिए, नित प्रति ही आनंद।
तन मन होगा आपका, स्वस्थ और सानंद।।
ज्येष्ठ श्रेष्ठ जो लोग हैं, कब करते हैं क्रोध।
पथ दिग्दर्शन वे करें, सत्य कराते बोध।।
आस्तीन में पल रहे, यारों सर्प हजार।
कुत्सित उनकी भावना, मिश्रित जहर विचार।।
मुझे खजाना है मिला, बढ़ी हमारी शान।
छंद सीखने मैं चला, बढ़ जाऐगा मान।।
आप मुझे भी दीजिए, छंद सृजन का ज्ञान।
शायद आ जाये मुझे, कुछ तो छंद विधान।।
सच्ची हो जब भावना, राह बने आसान।
चुभते कांटे भी लगे, मान और सम्मान।।
बोझ किसे हो मानते, बोझ कौन है मित्र।
इसी बोझ के पार्श्व में, है सुंदर सा चित्र।।
उसने अब तक हैं किये, सारे मुश्किल काम।
कैसा यह संयोग है, हुआ आज नाकाम।।
छोटा या कोई बड़ा, सबका कीजै मान।
बढ़ता जाए आपका, सदा मान सम्मान।।
कुर्बानी अपनी दिये, आजादी के नाम।
गायेंगे हम मिल सभी, नित नित आठों याम।।
गाओगे तुम कब भला, मात-पिता के गीत।
जिसने दिया शरीर है, तव जीवन संगीत।।
कब तक गाओगी भला, अपने मन की पीर।
किसने पोंछा क्या कभी, बहते नैनन नीर।।
मन मेरा करता नहीं, करुँ अधिक मैं काम।
बस इतनी सी चाह है, चमके मेरा नाम।।
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सुधीर श्रीवास्तव