दोहावली
12. दोहावली
मधुप पी रहा मधू को कली कली मुसकाए ।
रस ये ऐसा प्रेम का दान पान बढ़ जाए ।।
शत्रु तो बस तीन हैं, शोक रोग और भोग ।
जो नर इनको जीत ले पावे हरि से योग ||
श्वास लेउ हरि नाम की रक्त हरिमय होए ।
रोम रोम हरि हरि कहे, नर हरि हरि नर होए ।।
ज्ञानी जग में यों रहें, शूल संग ज्यों फूल |
खुशबू सब को बॉटते ऊँच नीच को भूल ।।
दिनकर दिन के देवता चाँद रात को होए ।
जो दिन में सोता भया रात रात भर रोए ।।
सद्गुण सच्चा मित्र है, दुर्गुण बिगड़ा बैल ।
हाथ संग मत राखिए, कभी हाथ का मैल ।।
जीवन चलती रेल है, यात्री बहुत मिलाए ।
सज्जन सज्जन धर लिए, दुर्जन बिसरत जाए ।।
पति पत्नी का मेल ज्यों, वृक्ष लता संग होए ।
सरिता सागर से मिले, तब सम्पूरण होए ।।
राम राम के नाम से, नाड़ी की गति हो होए ।
जो बिसरे हरि नाम को बिन नाड़ी का होए ।।
करे क्रोध चिन्ता नहीं, ना कर्त्तापन का मान ।
सदा रहे परहित निहित वो सच्चा इंसान ।।
सांई इस संसार में नित्य छाँव और धूप ।
दिया जले तो रोशनी, हिया जले अंधकूप ।।
रतन जतन से जोड़ते और पतन को पाये ।
जो मन से सिमरन करे, तो को और न भाये ।।
हरि हरि जो हरदम भजे, वा को कैसी पीर ।
मन को अस शीतल करे, जस प्यासे को नीर ।।
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प्रकाश चंद्र , लखनऊ
IRPS (Retd)