#दोहावली
हँसो हँसाओगे तभी, पाओगे तुम चैन।
हृदय खिला हो आपका, तभी मटकते नैन।।
उनसे ग़म हमको मिले, जिनसे चाह क़रार।
लूट चमन को ले गई, जैसे हँसा बहार।।
चलो अकेले राह में, भूल सभी उम्मीद।
मंज़िल का तब समझिये, होगा तुमको दीद।।
सुप्त-शक्तियाँ आप में, तप कर लो पहचान।
गगन हिला सकते तुम्हीं, निज का लो संज्ञान।।
झूठ बोलकर हारता, मनुज स्वयं ईमान।
वरना मानव है यहाँ, नित हीरों की खान।।
रिश्ते-नाते भूलकर, दंभ लिया अहसान।
इसी दंभ में मनुज है, असुर बना नादान।।
त्याग प्रेम के सार में, महापुरुष की आन।
परहित को जो डोलता, गूँजें उसके गान।।
खुद को जो पहचानते, कहलाते इंसान।
दूर स्वयं से भागते, भाग्यहीन नादान।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
#आर.एस. “प्रीतम”