दोहावली…
माँ की आँखें लाड़ में, आँसू से लवरेज।
मोती सच्चे प्यार के, रख ले इन्हें सहेज।।१।।
अपने अपने ना रहे, घर में रहकर गैर।
रिश्ते नाजुक मर रहे, कौन मनाए खैर।।२।।
चूल्हे घर में दो हुए, प्राणी केवल चार।
आँसू पीकर झेलते, विधना तेरी मार।।३।।
अपनी ही संतान जब, करे न मुँह से बात।
क्या होगा इससे बड़ा, दिल पर कह आघात।।४।।
मन को घोटे जी रहे, हलक न आए बैन।
उफ ये कैसी जिन्दगी,हर पल मन बेचैन।।५।।
जिसको सीने से लगा, सभी निभाए फर्ज।
पलभर की वो हाजिरी, आया करने दर्ज।।६।।
याद में जिनकी तड़पे, सारी-सारी रात।
आए आकर दे गए, आँसू की सौगात।।७।।
परदा डालें ज्ञान पर, काम मोह अरु क्रोध।
चंगुल इनके जो फँसे, रहे न सच का बोध।।८।।
खोट निकाले और में, खुद करता आराम।
निंदा-चुगली के सिवा, खलिहर को क्या काम।।९।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“मनके मेरे मन के” से