” दोहरी धारणा “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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कल्पना के पुष्पक विमानों में नहीं विचरता हूँ ! धरातल को ही अपना कर्म भूमि मानता हूँ ! तमाम घटनाओं पर मेरी पेनी नजर रहती है ! अपने गाँव ,शहर ,जिला ,राज्य ,देश और सम्पूर्ण विश्व के परिदृश्यों का अवलोकन करता रहता हूँ और विस्तार पूर्वक अध्ययन भी ! प्रतिक्रिया लिखना मेरी आदत बन गयी है ! मेरा तर्क मेरी मौलिक रचना बन जाती है ! स्थानीय विषयों को अधिकांशतः स्थानीय भाषा मैथिली,हिंदी और कभी -कभी अंग्रेजी से अलंकृत करता हूँ !..परन्तु देश और अन्तराष्ट्रीय विषयों का उलेख हम अंग्रेजी में ही करते हैं ! ..पता नहीं ..मुझे आभास हो रहा है लोग अंग्रेजी भाषा को ‘दलित ‘ क्यों समझ रहें हैं ? घृणाऔर उपेक्षा कहाँ से पनपने लगती है ? और फिर जब चुनाव का दौर आता है तो आलिंगनों का मौसम निकल आता है ! अपने बच्चों को तो कहते हैं यह चुनावी मौसम है दलितों को अपनाओ ,अंग्रेजी माध्यम ही तुम्हें पढ़ना है ! हम तो चले ‘हिंदी दिवस ‘ मनाने ! ऐसी दोहरी राजनीति का खेल अपने आने वाली पीढ़ियों को क्यों सीखा रहे हैं ? ,हमें ..भाषाओं का सम्मान करने से कतराना शोभा नहीं देता ! हम अपने बच्चों को अंग्रेजी ही पढ़ाना चाहते हैं तो हमारी घृणा कहाँ तक तर्कसंगत है ?===========================================डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड