दोहरापन
ना स्नेह रहा,ना विनय रहा ।
जीवन मे शेष अभिनय रहा ।।
चेहरे पर चेहरा लगा हुआ।
नियत पर पहरा लगा हुआ।
ईश्वर ने भी आँखे मूंद रखी।
समय बड़ा ही विकट हुआ।।
करे कोन कर्मो के फल, को नियत।
विधाता भी इस प्रश्न पर मौन हुआ।।
सम्भव है उनको लगता है ।
वो सत्य पथ पर चलते है ।।
उनके अतिरिक्त और भी है,
जिनके नयनो मे भी स्वप्न तो पलते है ।।
उँगली उन पर अन्तिम अवसर पर उठ ही जाती है ।
यह ही वो क्षण होता है,
जब विश्वाश की परते ठोकर खाती है ।