दोहरापन
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दिखावा होता सदा बड़ा खर्चीला
अन्दर खाली बाहर चमके पतीला
प्रदर्शन ने यह दुनिया अपंग बनाई
बाहर चमक दमक अन्दर से ढीला
बनावटीपन में इंसानियत चर हुई
मानवता का पाठ नहीं सीख पाया
दोगलापन हर जगह है नजर आए
स्पष्ट आचरण नजर नहीं है आया
चेहरों के ऊपर मुखौटे है पहनते
असली चेहरा नजर नहीं है आया
कभी नहीं भेद किसी का आया है
लगें जो सदाचारी अंदर मोह माया
समझ से परे होते सब ज्ञानी ध्यानी
पुण्य की बात करें, है पाप छिपाया
ऊँची दुकान अंदर फीका पकवान
दुकान अन्दर नकली माल सजाया
वीरता का रहें सदा गुणगान करते
मौके पर कोई भी नजर नहीं आया
दोहरी मानसिकता में हैं जीते रहते
भेद किसी के दिल का नहीं आया
विश्वासनीय ही विश्वासघाती होता
कहीं पर विश्वास नजर नहीं आया
सच्चाई का ढ़ोंगी झूठ बोलता रहे
सच्चा प्रतिनिधित्व दिख ना पाया
ईमानदारी पर्दे पीछे बेईमानी छिपी
ईमानदार शख्स नजर नहीं आया
सुखविंद्र भी है दोहरा चरित्र जीता
चरित्र स्पष्ट कोई नजर नहीं आया
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)