दोस्त
शीर्षक – दोस्त
सच तो हम दोस्त हैं।
बस हमारी सोच हैं।
दोस्त तो बस शब्द हैं।
हम तो मतलबी बने हैं।
शब्द ही तो दोस्त होते हैं।
अर्थ और निभाते कहां हैं।
हां हम सबके दोस्त होते हैं।
सच और झूठ के साथ हैं।
अगर दोस्त बने निभाते हैं।
सुदामा और कृष्ण प्रभु हैं।
दोस्त सच और जीवन हैं।
हम सभी संसारिक सोचते हैं।
बस दोस्त और दोस्ती करतें हैं।
आओ दोस्त दोस्ती निभाते हैं।
शब्द ही नहीं सच बयां करते हैं।
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र