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9 Jun 2022 · 1 min read

दोस्त दूरी बनाने लगे हैं।

गज़ल

212…..212…..212….2
दोस्त दूरी बनाने लगे हैं।
दुश्मनों सा दिखाने लगे हैं।

दोस्ती अब कहां रह गई है,
दुश्मनों से निभाने लगे हैं।

जिनसे उम्मीद थी गर्दिशों में,
पीछे खंजर चलाने लगे हैं।

तैरना जिनको मैंने सिखाया,
वो ही मुझको डुबाने लगे हैं।

पेड़ बोए बबूलों के जिसने,
तोड़ कर आम लाने लगे हैं।

ज़र जमीं और दौलत भी है क्या,
बेच ईमान खाने लगे हैं।

प्रेम के ढाई आखर न जाने,
वो ही प्रेमी कमाने लगे हैं।

……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी

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