दोस्त कहना ही छोड़ दिया
दोस्त कहना ही छोड़ दिया
वो मासूम नाहक मेरे लिए बदनाम हो जाएं
मसलन मैंने उस गली जाना छोड़ ही दिया
सवालों की लम्बी लिस्ट भी वहां दिख जाएं
एहतियातन मैंने जबाब देना भी छोड़ दिया
हवालों की एक-एक परत भी लगती जाएं
चुप्पी धार कर वहां ध्यान देना ही छोड़ दिया
चाहें हरकतें कितनी भी मस्तीमजाक भरी हो
उलाहने वाली टिप्पणी करना भी छोड़ दिया
देखा दूर से उसे परेशानी भरी उलझन से खड़ा
कुछ सोच कर मेरे मन उसे सुलझाना भी छोड़ दिया
अहसास भले ही आज भी पहले जैसा ही होता अति
उन भावों की स्याही को कागज पर उड़ेलना छोड़ दिया
पल भर का वह अनमोल सफर मधु मधुर यादों का
पर मैंने उनको नेह धागों में पिरोना ही छोड़ दिया
बातें रह गई बाकि अनेक दोनों तरफ
बस मुस्कुरा कर समझना समझाना ही छोड़ दिया
बिम्ब आज भी बना रहता अनमोल बेमेल दोस्ती का बेमिसाल कहां?उसने हमें दोस्त कहना ही छोड़ दिया।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान