दोस्त और चाय
जम जाती है महफ़िल किसी शाम अब भी
यादें पुरानी फिर ताजा हो जातीं हैं अब भी
दोस्त और चाय के साथ ज़मानें की बातें
मगर सुकुन मिलता है हंसगुल्लों में अब भी
शिव प्रताप लोधी
जम जाती है महफ़िल किसी शाम अब भी
यादें पुरानी फिर ताजा हो जातीं हैं अब भी
दोस्त और चाय के साथ ज़मानें की बातें
मगर सुकुन मिलता है हंसगुल्लों में अब भी
शिव प्रताप लोधी