दोस्तों ने सभी फ़ासला छोड़कर ।
ग़ज़ल
दोस्तों ने सभी फ़ासला छोड़कर ।
दर्द बेशक़ दिया दायरा छोड़कर ।
इश्क़ भी हाशिये पर रुका रह गया ।
जख़्म रोने लगा आसरा छोड़कर ।
शख़्स रोता रहा देखकर साज़िशें ।
वक़्ते दर प्यार का मामला छोड़कर ।
एक तूफ़ान दिल मे सुरु क्या हुआ ।
अश्क़ ठहरा रहा ज़लज़ला छोड़कर ।
चाहता चाहता चाहता चल पड़ा ।
चाहते मुड़ गयी चाहता छोड़कर ।
पास आया बड़ी मिन्नतों से मग़र ।
मंज़िले चल पड़ी रास्ता छोड़कर ।
कौन सुनता भला दर्द रकमिश तेरा ।
मौत भी चल पड़ी क़ायदा छोड़कर ।
@ राम केश मिश्र