दोस्ती
मेजर रतन सिंह और सूबेदार मनसुख एक साथ कई जगहों पर तैनात रहे थे, इसलिए उन दोनों के बीच काफी अच्छी दोस्ती थी। वे दोनों अपने सुख दुख बांटा करते थे, चाहे रतन सिंह के अकेले मां बाप के बारे में चिंता वाली बात हो या फिर मनसुख के नई नवेली पत्नि को छोड़कर आने की चिंता सब बातें वो दोनों आपस में करके एक दूसरे का गम बांट लिया करते थे।
इसी तरह वो दोनों घर से दूर रहकर भी एक दूसरे को अकेलापन महसूस नहीं होने देते थे।
फौज की नौकरी में कई मोर्चों पर साथ साथ रहने के दौरान अब दोनों ही काफी घनिष्ट मित्र बन गए थे और एक दूसरे का ध्यान रखते हुए वो परस्पर दुख सुख बांटा करते थे। इसी तरह से उनके दिन गुजर रहे थे कि तभी पड़ोसी देश की ओर से कुछ घुसपैठ की खबर मिली और उनकी बटालियन को इस मामले को देखने की जिम्मेदारी मिली थी।
मेजर रतन सिंह इस टास्क पर अपनी टीम को लीड कर रहे थे और मनसुख अपने साथियों के साथ रतन सिंह के साथ था। वो सभी बॉर्डर पर सर्चिंग कर रहे थे और उन्हें इस काम में लगे कई घण्टे बीत चुके थे, मनसुख ने रतन सिंह को कहा साहब जी हमें चलते हुए कई घण्टे हो गए हैं जवान थक गए हैं क्या थोड़ी देर सुस्ता लें। इस पर रतन सिंह ने कहा कि अभी हम खुले में है रुकेंगे तो खतरा ज्यादा रहेगा इसलिए किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचकर सुस्ता लेंगे।
अभी वो दोनों बात कर ही रहे थे कि तभी अचानक उनके ऊपर हमला हो गया था और उनके ऊपर गोला बारूद बरसने लगा था, उस समय वो सब खुले में थे तो रतन सिंह ने अपने जवानों को जल्दी से कहीं आड़ लेकर दुश्मनों से बचने का आदेश दिया।
अब वहां सीमा पर दुश्मनों और रतन सिंह की तुकड़िबके बीच घमासान लड़ाई होने लगी, दोनों तरफ से गोलियों की बौछार हो रही थी। रतन सिंह ने देखा कि दुश्मनों की ओर से एक रॉकेट नुमा बम मनसुख के पास आकर गिरा है और मनसुख का ध्यान उधर नहीं गया था, तो रतन सिंह ने आव देखा न ताव और पलक झपकते ही उस रॉकेट के ऊपर झपटते हुए उसे पकड़कर दूर फेंकने की कोशिश की,लेकिन जैसे ही रतन सिंह ने रॉकेट को लेकर दौड़ लगाई थी की वो उसके ऊपर ही फट गया और रतन सिंह बुरी तरह से घायल हो गया।
ये दृश्य देखकर मनसुख ने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए रतन सिंह की ओर दौड़ लगाई और उसे उठाकर अपने खेमे में ले आया, उसे पानी पिलाकर मनसुख ने कहा मेरी जान बचाने के लिए आपने अपनी जान क्यों खतरे में डाल दी साहब। रतन बोला यार अब आखिरी वक्त में तो साहब बोलकर हमारी दोस्ती की तौहीन मत कर, मैंने अपने दोस्त की जान मुसीबत में देखी तो भला कैसे चुप रहता और वैसे भी तेरे ऊपर मेरे से ज्यादा जिम्मेदारियां है तेरी नई नई शादी हुई है और बुजुर्ग मां बाप भी हैं। बस यार इतना करना कि मेरे मां बाप का मेरे सिवाय कोई नहीं है तो अपने परिवार के साथ साथ उनका भी ख्याल रखना, इस पर मनसुख ने उसका घायल हाथ पकड़कर उससे वादा किया और फिर रतन सिंह शहीद हो गया।
उस दिन मनसुख ने रतन का अधूरा काम पूरा करते हुए पूरी बहादुरी से लड़कर दुश्मनों को सीमा से बाहर खदेड़ कर मातृभूमि की रक्षा कर ली थी। उसके बाद से वो अपने वादे के अनुसार अपने परिवार के साथ साथ अपने दोस्त रतन सिंह के मां बाप को भी अपने मां बाप की तरह देखभाल कर रहा था और ये सिलसिला आज भी जारी है जब वो फौज से रिटायर हो गया है और अपने खेतों के साथ साथ रतन सिंह के खेतों में भी खेती किया करता था, उससे जो भी मुनाफा होता उसे रतन सिंह के मां बाप को दे भी दिया करता था।
तो ऐसी थी फौज के बहादुर जवानों मेजर रतन सिंह और सूबेदार मनसुख की दोस्ती, जिसकी मिसाल आज भी उनके गांव के लोग दिया करते हैं।
✍️ मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, छत्तीसगढ़ मो.नं.9827597473