दोस्ती के दोहे
दोस्ती के दोहे
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जानें दिल की पीर को,बढ़े प्यार का हाथ।
बन परछाई यार फिर,चलें हमेशा साथ।।
दोस्ती होती मोह से,छूटे न कभी प्रीत।
सिर के ऊपर ताज है,जो हो सच्चा मीत।।
लाख टके की बात ये,मानो मेरे यार।
जीना तो है प्रेम का,बाकी सब बेकार।।
हाथ पकड़ के छोड़ ना,जाए चाहे जान।
धोखा कायरता सुनो,गिरती जिससे शान।।
बड़ा ख़ज़ाना एक है,मिला बना जगजीत।
कृष्ण-सुदामा संग-सी,होती जिसकी प्रीत।।
दिला सके खुद हार के,यहाँ दोस्त को जीत।
प्रकृति सरिस वो ख़ूब है,अच्छा सच्चा मीत।।
दोस्ती ऐसा नाज़ है,आएँ दुख ना पास।
समय ख़ुशी में झूम के,होता जाए खास।।
जाति धर्म से दूर है,दोस्ती है अभिमान।
रिश्ता छोटा ख़ून का,इससे ये बलवान।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”