दोस्ती श्मशान में चिता की तरह है
दोस्ती
एक रिश्ता है
जिसे फ़रिश्ते नहीं बनाते
ये खून से नहीं
विचारों से बनता है
इसकी प्रकृति
खून से भी गाढ़ी होती है
दोस्ती तोड़ देती है
सामाजिक बंधनों की दीवार
ऊँच-नीच,जात-पांत
लिंग और अमीरी-गरीबी के भाव से मुक्त
करती है एक नवीन सृष्टि की रचना
जहाँ कृष्ण सुदामा को
सिंहासन पर बिठाकर
पखारते हैं उसके पाँव
अश्रुओं से
दोस्ती
शर्म-संकोच की बेड़ियों से परे
व्यक्त कर देती है हर भाव
सारे संसार से छुपाकर रखी गयी
मन की पीड़ा
उभर आती है
सच्चे मित्र के सम्मुख
दोस्ती एक बैंक है
जहाँ पर जमा
चवन्नी भर का सुख
बदल जाता है
नोटों की गड्डियों में
बस एक ही पल में
दोस्ती सर्वव्यापी है
ईश्वर की तरह
उसके बंधनों से मुक्त
कहीं भी फूल-फल सकती है
धरती-आकाश,जीवन-मृत्यु
ग्रह-नक्षत्र ,जीव-पादप
जल-अग्नि-वायु
सब इसके अधीन हैं
दोस्ती
श्मशान में चिता की तरह है
जो तब अपनाती है
जब सारे रिश्ते-नाते
चले जाते हैं छोड़कर
जीवन भर का साथ
और तोड़कर
साथ निभाने का वचन