दोस्ती के रिश्ते
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दोस्ती के रिश्ते मैंने देखे उधेड़ कर जब।
दोस्तों ने खुशियाँ बांटे गैरों ने दर्द बांटे।
सूरज की रौशनी से जब फूटा सिरफ़ लहू था।
ये थे अँधेरे जिसने मेरे गम के अँधेरे बांटे।
दर्दों के कोख दोस्तों ने जितने सके हैं पाले।
वे गैर थे सड़क के जिसने हैं दर्द बांटे।
जिन्दगी की ख़ुशी,गम के हिस्सेदार हमने देखे।
हम दोस्त हैं वे दुश्मन रिश्तों ने ऐसे बांटे।
दर्दों के रिश्ते ऐसे कि दुश्मन से मिला देता।
दुश्मन ने दोस्ती तब,अपनों ने गर्द बांटे।
खुशियों से जुड़ा रिश्ता,ठहरा हुआ पानी है।
अपनों ने दर्द,पीड़ा कुछ ब्याज कर्ज बांटे।
अच्छों तथा बुरों को रिश्तों ने तय किया है।
इस काव्य के खण्डों को दर्दों ने सर्ग बांटे।
उनकी निगाह कैसी,इनकी निगाह कैसी।
चाहे दोस्ती या दुश्मनी दर्दों न्र गरज बांटे।
कुर्बान जाँ को करना या इनको नहीं लुटाना।
लोगों ने नहीं बांटे रिश्तों ने फ़र्ज बांटे।
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