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24 Dec 2023 · 4 min read

दोस्ती की कीमत – कहानी

विवेक और पारस गहरे दोस्त थे | वे दोनों एक दूसरे के पड़ोसी थे | उनके पिता भी एक ही कार्यालय में कार्यरत थे | दोनों परिवारों में काफी गहरे घरेलू सम्बन्ध थे | विवेक बचपन से ही ज्यादा संवेदनशील था | जबकि पारस चंचल स्वभाव का था | विवेक अपनी दोस्ती के लिए किसी भी हद तक जा सकता था |
एक बार की बात है जब पारस ने मोहल्ले में साइकिल चलाते हुए एक बच्चे के ऊपर साइकिल चढ़ा दी थी | तब इस घटना को पारस के कहने पर विवेक ने अपने ऊपर ले लिया था क्योंकि वह जानता था कि यदि पारस के पापा को पता चल गया तो वो पारस की चमड़ी उधेड़ देंगे | इस घटना के बाद पारस को लगने लगा कि जब भी ऐसी कोई घटना होगी वह अपने दोस्त विवेक की मदद से खुद को बचा लेगा |
एक दिन पारस अपने दोस्त के साथ बाज़ार जा रहा था | रास्ते में जब वह गलत साइड से सड़क पार कर रहा था तो उसे विवेक ने रोका | कितु पारस ने विवेक की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और सड़क पार करने लगा | इसी बीच सड़क पर आ रही एक मोटर साइकिल से वह टकरा गया | वैसे तो उसे कोई ख़ास चोट तो नहीं लगी पर उसने गुस्से में एक पत्थर उठाया और मोटर साइकिल वाले को दे मारा | मोटर साइकिल वाले के सिर से खून निकलने लगा | यह देख पारस वहां से भाग गया | विवेक ने भी इस घटना का जिक्र किसी से नहीं किया | बात आई और गई हो गयी | इस घटना के बाद पारस का हौसला और बढ़ गया |
स्कूल में एक दिन खेलते – खेलते पारस को पीछे से उसकी ही कक्षा के एक बच्चे महेश का धक्का लगने से पारस गिर जाता है | यह बात पारस को नागवार गुजरती है | पारस , महेश से बदला लेने के रास्ते खोजने लगता है | आधी छुट्टी के बाद फिर से एक और खेल का पीरियड मिलने से पारस का चेहरा खिल उठता है | वह विवेक को कहता है कि वो महेश को साइंस लैब के पीछे भेज दे मुझे उससे एक ख़ास काम है | सुबह की घटना से अनजान विवेक , महेश को जाकर कहता है कि पारस तुझसे साइंस लैब के पीछे मिलने के लिए बुला रहा है | महेश को लगा कि सुबह वाली घटना को लेकर पारस माफ़ी माँगना चाहता होगा इसलिए वह उसके पास जा पहुंचा | उसके पारस के पास पहुँचते ही पारस ने उसे पीटना शुरू कर दिया और तब तक पीटता रहा जब तक कि महेश बेहोश नहीं हो गया | उसके बाद पारस धीरे से वहां से खेल के मैदान में आ गया ताकि सबको लगे कि वो सबके साथ खेल रहा था |
कुछ देर बाद किसी ने स्कूल के प्रिंसिपल को बताया कि महेश साइंस लैब के पीछे बेहोश पड़ा है | वे उसे वहां से उठाकर अस्पताल ले गए | डॉक्टर ने बताया कि महेश की हालत नाजुक है | वहां पारस ने विवेक को समझा दिया कि तूने आज तक मेरा साथ दिया है और आज भी मेरा साथ देगा | मुझे तुझ पर विश्वास है | विवेक ने कुछ नहीं कहा | दोनों घर चले गए | अगले दिन महेश की पिटाई को लेकर स्कूल में पूछताछ होने लगी | विवेक चुप रहा | किसी बच्चे ने बताया कि खेलते समय विवेक ने महेश से कुछ कहा था | उसके बाद महेश मैदान छोड़कर कहीं चला गया था | पर विवेक ने इस बात से इनकार कर दिया |
पारस भी चुप रहा | कुछ देर बाद प्रिंसिपल सर ने विवेक और पारस को अपने कमरे में बुलाया | पर दोनों अपनी बात पर अड़े रहे | जब सख्ती की गयी तो पता चला कि विवेक ने पारस का गुनाह अपने सिर पर ले लिया | पर प्रिंसिपल सर को विश्वास ही नहीं हो रहा था | उन्होंने सी सी टी वी कैमरे का सहारा लिया तो पता चला कि विवेक ही महेश को बुलाने खेल के मैदान पर गया था और दूसरे कैमरे से देखने पर पता चला कि पारस बहुत ही बेरहमी से महेश को पीट रहा था | आखिर पारस को अपनी गलती स्वीकार करनी पड़ी और उसके माता – पिता को स्कूल बुला लिया गया | वे भी हर बार की तरह सोच रहे थे कि गलती विवेक की रही होगी | क्योंकि बचपन से ही विवेक अपने दोस्त पारस को बचाता आ रहा था | पारस को स्कूल से निकाल दिया गया | साथ ही महेश के इलाज का सारा खर्च भी पारस के पिता से लिया गया |
विवेक को भी पारस का साथ देने के लिए पंद्रह दिनों के लिए स्कूल से निष्कासित कर दिया गया | अपने दोस्त को और दोस्ती को बचाने के चक्कर में आज विवेक को ये दिन देखना पड़ा | अब उसे भी पता चल गया कि कोई भी हो उसकी गलती में उसका साथ नहीं देना चाहिए |

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Books from अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
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