दोस्ती अंधेरों से कर चुकी हूं मै –
लोग तोड़ देते हैं दम ,
मात्र एक शब्द कहने भर से।
छोड़ देते हैं साथ क़दम,
मात्र एक ठोकर लगने भर से।
आहें भर रो देते हैं नयन,
मात्र एक जख्म दिल पर लगने भर से।
अब न कुछ होगा असर,
बेअसर हो चुकी हूं मैं।
परेशान हो जाते हैं लोग अक्सर,
मात्र बत्ती गुल हो जाने भर से।
कुछ रो रो करते हैं दुःख बयां,
मात्र जाम में फस जाने भर से।
गूगल पर सर्च करते हैं डाक्टर,
मात्र बुखार भर हो जाने से।
मेरे लिए न होना परेशान, दुखों की हद से रूबरू हो चुकी हूं मैं।
जैसे ही सुहानी भोर होती है,
दोपहर की तापिश से घबराने लगते है लोग।
रूपों वाली सांझ से सराबोर न होकर,
अंधेरे की रात से सहम जाते हैं लोग।
चल रहा होता है जो पल अक्सर,
उसे छोड़ अपनी पसंद का शहर बसा लेते हैं लोग
रेखा को मत दो उजालों का नूर
क्योंकि अंधेरों को जुगनू बना चुकी हूं मै।