दोषी स्वर्ण या दलित
आजकल छुआछूत, जात – पात, अगला – पिछड़ा के नाम पर समाज को तोड़ने की भरपूर कोशिश की जा रही है और अनेक तरह की सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल किया जा रहा है, जिसमें यह दिखाया जा रहा है कि देखो दलित समाज के लोगों तुम्हारे पूर्वजों के ऊपर ऊंची जातियों के लोग किस तरीके से अत्याचार किए थे कि तुम्हारे पूर्वज एक बूंद पानी के लिए मर जाते थे लेकिन ऊंची जातियों के लोग पानी पीने नहीं देते थे। इस तरीका का वीडियो दिखा करके हिंदू समाज को तोड़ने के लिए पुरजोर कोशिश की जा रही है।
यह पूरी साजिश की तहत की जा रही है। मेरा कहने का मतलब है कि यह नहीं है कि ऊंची जातियों के लोग छुआछूत या भेदभाव नहीं रखते थे, रखते थे लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ऊंची जातियों के लोग पूरा दोषी हैं बल्कि दलित जाति के लोग भी इसके दोषी है। यानी कुछ गलतियां ऊंची जातियों के लोग किए थे तो कुछ गलतियां दलित समाज के लोग भी किए थे, जिसके कारण समाज में छुआछूत जैसी बीमारियां फैली थी।
बात यह है कि हमलोग हिंदू जीवन पद्धति को जीने वाले लोग हैं और हिंदू जीवन पद्धति को जीने वाले लोग सनातन धर्म को मानते हैं, जिसके चलते हम सनातनी कहलाते हैं और सनातन धर्म में गाय को मां और बैल को महादेव का दर्जा दिया गया है। जबकि कुछ वर्ष पहले आज के अनुसार ही उस समय पूर्वज लोग इन पशुओं को पालते थे साथ ही भेड़, बकरी भी पालते थे लेकिन गाय और बैल जैसे पशुओं की मृत्यु हो जाने पर ऊंची जातियों के लोग इन पशुओं की शरीर को दलित जातियों के लोग को सौंप देते थे, जिसको लेकर दलित जातियों के लोग गांव से दूर सरेह में ले जाकर के उसके शरीर से चमड़े को उतारते थे और उस चमड़े को शहर के बाजार में ले जाकर के बेच देते थे, जिससे दो पैसा उन लोगों को मिलते थे और उस पैसे से बेचारे गरीब दलित जातियों के लोग अपनी और अपने परिवार की जीविकोपार्जन करते थे। उसी प्रकार भेड़, बकरियों की मृत्यु होने पर ऊंची जातियों के लोग दलित जातियों के लोगों को दे देते थे, जिससे दलित जातियों के लोग उन भेड़, बकरियों के चमड़े को छिलते थे और चमड़े बेचने के काम में लाते थे जबकि उनके मांस को खाते थे। इसी के कारण ऊंची जातियों के लोग दलित जातियों के लोगों से छुआछूत जैसी भेदभाव रखते थे और इसी के कारण समाज में एक साथ बैठने उठने की इजाजत नहीं थी। कुएं से पानी भरने की इजाजत नहीं थी और मंदिरों में प्रवेश वर्जित था लेकिन आज यह सारा कुछ समाप्त हो चुका है। फिर भी कुछ लोग पुरानी बातों को ढो रहे हैं जबकि इससे उनको भी हानि है और हमको भी हानी है। क्योंकि इसमें केवल ऊंची जातियों के लोगों का दोष नहीं है बल्कि दलित जातियों के लोगों का भी दोष है। जैसे पशुओं की मृत्यु हो जाने पर ऊंची जातियों के लोग उसे दफनाने की जगह दलित जातियों के लोगों को देकर यह गलती करते थे। वहीं दलित जातियों के लोग पशुओं के चमड़ी उतारते थे और बाजार में बेचते थे, साथ ही भेड़, बकरियों की चमड़ी उतार कर बाजार में बेचते थे और उसकी मांस को खाने में प्रयोग करते थे। इस तरीका से यह भी गलतियां करते थे। जिसके कारण समाज में एक साथ बैठने उठने, सार्वजनिक स्थलों पर जाने और धार्मिक स्थलों पर जाने से वर्जित रह जाते थे लेकिन परिस्थितियां बदली, पीढ़ियां बदली जिसके कारण ऊंची जातियों के लोगों ने पशुओं की मृत्यु होने पर दलित जातियों के लोगों को न देकर उन्हें दफनाना शुरू कर दिया। जिससे दलित जातियों के लोगों को मृत पशु मिलते नहीं थे, जिसके चलते वे लोग मृत पशुओं की चमड़े छिलना और उसके मांस को खाना बंद कर दिए। उस समय दलित जातियों के लोगो के जीविका चलाने में दिक्कत आई लेकिन इनकी भी पीढ़ियां बदल चुकी थी, जिसके चलते ये लोग अपना जीविका चलाने के लिए दूसरा उपाय ढूंढ लिए। इसके कारण कुकर्म प्रवृत्ति समाप्त हो गई और धीरे-धीरे समाज से छुआछूत मिटने लगे। इस तरीका से दोषी न स्वर्ण है और न दलित अगर दोषी कोई है तो उस समय की परिस्थितियां।
आज यह बिल्कुल पूर्ण रूप से समाप्त हो चुकी है। एक साथ बैठने उठने से लेकर कुएं में पानी भरने, सार्वजनिक स्थलों या धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए सारे दरवाजे खुल चुके हैं। यहां तक की आप यह भी देखते हैं कि ऊंची जातियों के लोगों के यहां जग प्रोजन पड़ जाने पर ऊंची जातियों के लोग दलित जातियों के लोगों को बुलाते हैं और भोजन कराते हैं। वहीं जब दलित जातियों के लोगों के यहां जग प्रोजन होती है तो उनके द्वारा आमंत्रण देने पर ऊंची जाति के लोग भी जाकर के उनके यहां भोजन करते हैं। यानी एक तरीका से बिल्कुल रूप से छुआछूत जैसी बीमारियां समाप्त हो चुकी है अगर कहीं एका दुका दिखाई दे रहा है तो वह जातियों का छुआछूत नहीं है बल्कि सफाई को लेकर के छुआछूत है। जैसे ऊंची जाति के व्यक्ति का घर है लेकिन साफ सुथरा नहीं रहता है तो उसके यहां का पानी पीने से भी लोग हिचकीचाते है। जबकि वही दलित व्यक्ति का घर है लेकिन साफ सुथरा रहता है तो उनके यहां का पानी कौन कहे लोग उनके यहां भोजन भी बेहिचक करते हैं।
लेकिन आज भी समाज में छुआछूत, अगला – पिछड़ा के नाम पर साजिश के तहत अफवाहे फैलाई जा रही है। इसमें ईसाई मिशनरियों, मुस्लिम संप्रदाय और महान पुरुष बाबासाहेब भीम राव रामजी अंबेडकर के नाम पर भीम आर्मी चलाने वाले संगठन के संस्थापक और उनके मुख्य कार्यकर्ताओं जो अपने कदम राजनीति में रखने के लिए इस तरीका के अफवाह फैला करके दलितों को गुमराह करने में लगे हुए हैं। वहीं दूसरी ओर ईसाई मिशनरियां और मुस्लिम संप्रदाय छुआछूत के नाम पर दलितों को धर्म परिवर्तन कराने में लगी हुई है।
जबकि उन लोगों को यह मालूम नहीं है की दलित समाज भी शिक्षित हो चुका है, जो इस तरीके के फैलाए जा रहे अफवाहों में आने वाली नहीं है। चाहे वे लाख कोशिश कर ले की स्वर्ण – दलित के नाम पर दलितों को गुमराह करके राजनीति में अपना कद रख लें तो ऐसा दलित लोग कभी होने नहीं देंगे और नहीं धर्म परिवर्तन कराने वाले लोगों की कोशिश सफल होने देंगे।
लेखक – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳