*दोषी कौन ? (कहानी)*
दोषी कौन ? (कहानी)
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” हजूर मेरी यही विनती है कि आप आदेश पारित करके कॉलोनी के सारे मकानों को चौबीस घंटे के अंदर ढहा दें, ताकि कानून का उल्लंघन करने वालों को एक सख्त संदेश जाए और फिर भविष्य में कोई भी अनधिकृत कॉलोनी बनी हुई नजर न आए।”
” नहीं हजूर ! यह बहुत बड़ा अन्याय होगा । हमारे मुवक्किलगण कॉलोनी में पंद्रह साल से रह रहे हैं । बाकायदा रजिस्ट्री करा कर इन्होंने जमीनें खरीदी हैं । मकान बनाए हैं । अपने गाढ़े पसीने की कमाई को अपने आवास के तौर पर सजाया है । अब इन्हें बेघर कर देना इनके साथ ज्यादती होगी ।”
“मगर गलत काम की सजा तो मिलेगी ही ! हम इसे नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं ? फिर तो हर आदमी अवैध कब्जा करेगा, निर्माण करेगा और बाद में हमारे पास आकर यही कहने लगेगा कि हजूर हमें बेघर मत कीजिए ? ” – जज साहब ने मुकदमे को सुनते समय बीच में टिप्पणी की ।
प्रतिवादी पक्ष के वकील ने अपना तर्क रखा – “हजूर गलती किसकी है ,इस पर भी तो जाना पड़ेगा ? जब मकानों की रजिस्ट्री की जा रही थी तब सरकार का रजिस्ट्री दफ्तर था । सरकार के अधिकारी थे। उन्होंने यह देखने की तकलीफ क्यों नहीं की कि इन जमीनों की रजिस्ट्री पर सरकार को कोई आपत्ति तो नहीं है ?”
“क्या मतलब “-जज साहब चौंके। यह तर्क उनके लिए अप्रत्याशित था ।
“हजूर ! मेरा कहना यह है कि जब रजिस्ट्री हो रही थी तब सरकार की तरफ से “नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट” संलग्न होना चाहिए था । यह तो कोई बात हुई नहीं कि पंद्रह साल पहले रजिस्ट्री हुई और पंद्रह साल के बाद अब सरकार खड़ी हुई है और कह रही है कि यह रजिस्ट्री गलत है । सरकारी जमीन हमारी है । मेरा कहना है कि आप रजिस्ट्री के समय कहां थे ? ”
“मगर हजूर मैं आपत्ति करता हूं । सरकार पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता।” वादी के वकील ने कहना शुरू ही किया था कि जज साहब ने टोक दिया। “आपको आपत्ति करने का अधिकार नहीं है। प्रतिवादी अपनी बात को कहना चालू रखें ।”
प्रतिवादी ने कहा “हजूर ! गलती सरकार की है । उसने कानून बनाया लेकिन यह नहीं देखा कि उस कानून का पालन सही ढंग से हो रहा है अथवा नहीं हो रहा है ? गलती प्रशासन की है जिसने सरकार के द्वारा बनाए गए कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया ।”
“तो सजा आप के अनुसार शासन और प्रशासन के लोगों को मिलनी चाहिए ? ” जज साहब ने सवाल किया।
“नहीं हजूर ! अगर गुस्ताखी माफ करें और जान की सलामती की गारंटी दें तो एक बात कहूं ?”
जज साहब ने मुस्कुराते हुए कहा- ” निर्भय होकर अपनी बात कहो “।
वकील साहब उत्साहित होकर कहने लगे ” हजूर ! असली दोष तो आप की अदालत का है ।”
सुनकर जज साहब कुर्सी पर से उछल पड़े । कहने लगे “क्या मतलब ? ”
वकील साहब ने कहा ” हजूर ! आप की अदालत में पंद्रह साल से केस चल रहा है। इस बीच कॉलोनी में न जाने कितने मकान बनते चले गए । लोग रहने लगे और रहते-रहते वह वहां के निवासी बन गये हैं।”
” मगर मेरे पास तो यह केस मुश्किल से छह महीने पहले आया है । पंद्रह साल की बात आप कैसे कर सकते हैं ? “-जज साहब ने प्रश्न किया ।
“मैं आपकी पर्सनल बात नहीं कर रहा । मैं सिस्टम की बात कर रहा हूं । सिस्टम में यह मुकदमा पंद्रह साल से पड़ा हुआ है। तारीखों पर तारीखें पड़ती रहती हैं । कोई सुनवाई नहीं ! कोई फैसला नहीं ! आज आप फैसला सुना देंगे ! बुलडोजर मकानों पर चल जाएगा । चारों तरफ मलबे का ढेर लग जाएगा । बेशक पेड़ काटकर इस जमीन को सीमेंट के जंगल में बदला गया था । लेकिन क्या मकान गिरा देने से फिर से हरे-भरे पेड़ वापस आ जाएंगे ? जरा सोचिए सिवाय बर्बादी के और क्या मिलेगा ? एक बसी-बसाई कॉलोनी गुजर जाएगी । आप कानून की अक्षरशः व्याख्या करते रहेंगे । उसकी आत्मा को नहीं पढ़ पाएंगे । इन निवासियों की चीख-पुकार ,आंसू और बेघर होने की व्यथा पढ़ने की कोशिश कीजिए और असली दोषी की तलाश करिए ? ”
जज साहब सोच में डूब गए और कहने लगे “असली दोषी मैं आपको कल बताऊंगा।” इसके बाद अदालत अगले दिन तक के लिए स्थगित हो गई ।
.अगले दिन फिर अदालत लगी । जज साहब बेहद शांत मुद्रा में थे । आते के साथ ही उन्होंने अपनी जेब से एक कागज निकाला और अपने असिस्टेंट को पढ़ने के लिए कहा । आदेश दिया “जोरदार आवाज में पढ़ना ,ताकि सब लोग सुन सकें।”
असिस्टेंट ने पढ़ना शुरू किया-” मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि असली दोषी वह सारे लोग हैं जिन्होंने पंद्रह साल से मुकदमे की तारीख पर तारीख पड़ने में योगदान दिया है । उन सब की खोज की जाए और उनको दंडित किया जाए ।”
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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