दोनों हाथों में भरकर हर ख्वाहिश को उछाल दो
दोनों हाथों में भरकर, हर ख्वाहिश को उछाल दो
हर गम को लगाकर सीने से, हर बात को टाल दो
देखो अपनी आंखों से
कि क्या दिखता है
दूसरों की नजर के
चश्मे से, क्या दिखता है
तुम्हे जो खुद से जुदा करे,उस समझ को चूल्हे में डाल दो
दोनों हाथों में भरकर, हर ख्वाहिश को उछाल दो
ये अकड़ नहीं
बस जिद्द की बात है
खुद ही की मुसीबतों में
गम की रात है
दर्द है जिस बात का ,उसे आसुओं में उबाल दो
दोनों हाथों में भरकर, हर ख्वाहिश को उछाल दो
मुस्कुरालो,गलतियों पर
अपनी
गुनगुना लो,लापरवाहियों पर
अपनी
जियो ऐसे की ,मुश्किलों को भी कुछ सवाल दो
दोनों हाथों में भरकर, हर ख्वाहिश को उछाल दो
किसी के दुख में
पिघल सको तो पिघल जाओ
ये जहर के घूंट
निगल सको तो निगल जाओ
इस हैवानियत के दौर में,इंसानियत की मजाल दो
दोनों हाथों में भरकर ,हर ख्वाहिश को उछाल दो
मैं ये नहीं कहता
मेरी मानो
तुम्हारी मर्जी
तुम जानो
तुम अगर हो ,तो हो कहां,खुद को तो मिसाल दो
दोनों हाथों में भरकर, हर ख्वाहिश को उछाल दो
मैं कोई ज्ञानी नहीं हूं
कुछ समझूं भी ना
अज्ञानी नहीं हूं
बस दिल में आया
सो कह दिया
अब जो तुम्हारे दिल में हो भड़ास, उसको भी निकाल दो
दोनों हाथों में भरकर हर ख्वाहिश को उछाल दो
दीपाली कालरा