“दोचार-आठ दिन की छुट्टी पर गांव आए थे ll
“दोचार-आठ दिन की छुट्टी पर गांव आए थे ll
हम नौकर छुट्टियां इकट्ठी कर गांव आए थे ll
पत्नी रूठी हुई थी, और बच्चे मान नहीं रहे थे,
हम उन्हें लेकर मगर उनसे कट्टी कर गांव आए थे ll
परदेश में बसने वाले तो त्योहार पर भी नहीं आते,
अंतिम बार वो अपने पिता की मट्टी पर गांव आए थे ll
दिल और दिमाग दोनों चूर-चूर थे काम करते करते,
हम बेचारे जैसे-तैसे मरहम पट्टी कर गांव आए थे ll
सिर्फ हम जानते हैं क्या-क्या छीना है शहर ने हमसे,
गांव वाले समझ रहे थे हम तरक्की कर गांव आए थे ll”