दोगलापन
दोगलापन”
जो संकटकाल को भी अवसर बना रहे हैं,
वो दूसरों को डंके की चोट पर देशद्रोही बता रहे हैं।
शहीदों की क़ुर्बानी भुलाई नहीं जाएगी,
बस यह पंक्ति बार-बार दोहराई जाएगी।
मक़सद पूरा हुआ शाहिद पृष्ठभूमि में चले जाते हैं,
शब्द याद नहीं रहते जो भावुकता में कहे जाते हैं।
झूठ पर झूठ बोलते अब इतना हो गया,
उनका कभी कभार बोला सच भी झूठ में खो गया।
मैं क्या कर रहा हूँ इस पर नहीं है ज़ोर,
वो कुछ नहीं करता सारा ध्यान है इस ओर।
आपदा में भी दूसरों की कमी निकालना धर्म हो गया,
वातावरण बिगाड़ना जैसे राजनेताओं का कर्म हो गया।
हर वक्त राजनैतिक लाभ के अवसर खोजे जाते हैं,
इसके लिए लोगों की जान तक दांव पर लगाते हैं।
कथनी और करनी इनकी मेल नहीं खाती हैं,
हर बार अवसर देख दोनों ही बदल जाती हैं।
कितना असहाय महसूस करते हैं वो,
इनके स्वाँग को पूरी तरह समझते हैं जो।