दे पहला अधिकार हमें।।
न कटुता तेरी क्रुद्ध करे, न कोई बाधा मार्ग अवरुध्द करे।
काल भी थर-थर कांप उठे, जब वैरी संग हम युद्ध करें।।
कालजयी हम वीर सिपाही, भाये इसका ही श्रृंगार हमें।
पर मातृभूमि पे शीश चढ़ाने, का दे पहला अधिकार हमें।।
न जात-पात का भेद-भाव, निज कर्म करें बिन फल की आशा।
न राज-पाट की चाहत हमको, ना जीवन मे सुख की अभिलाषा।।
जिसकी रहती जैसी भाषा, वैसा बोलने से न इंकार हमें।
पर मातृभूमि पे शीश चढ़ाने, का दे पहला अधिकार हमें।।
न तोल मोल ही करना जाने, न जाने करना संचय धन,
न छल की रही परंपरा अपनी, बस जीतना चाहे सबका मन।
मोल हमारी इतनी सी, मिले निच्छल सबका प्यार हमें,
पर मातृभूमि पे शीश चढ़ाने, का दे पहला अधिकार हमें।।
हे भाग्य बिधाता बस इतनी विनती रखना याद मेरी,
चाहें दे न भले कुछ पर सुनले, तुझसे ये फरियाद मेरी
नेह मिले या वार मिले, हर पहल तेरा स्वीकार हमें।
पर मातृभूमि पे शीश चढ़ाने, का दे पहला अधिकार हमें।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १०/११/२०१८ )