#देसी_ग़ज़ल
#देसी_ग़ज़ल
■ जाल तलक कब आएगी…?
(आज के हालात पर)
【प्रणय प्रभात】
◆ मन की बतिया तन की बतिया, माल तलक कब आएगी?
जनता रोटी में उलझी है, दाल तलक कब आएगी??
◆ कोने में मासूम खड़ी ये ताक रही है टुकर-टुकर।
नेह भरी हौली सी थपकी गाल तलक कब आएगी?
◆ मछली दाने के चक्कर में बौराई सी भटक रही।
मछुआरा ये सोच रहा है जाल तलक कब आएगी?
◆ भूखों मार रहा है ज़ालिम नज़र गढ़ाए ताड़ रहा।
पेट के अंदर वाली झुर्री, खाल तलक कब आएगी?
◆ फ़ाकामस्ती की पस्ती से,
दूर खड़ा मैं सोच रहा।
मेरी हस्ती मेरे अपने, हाल तलक कब आएगी?
◆ मुझे पता है वार कड़ा है, फिर भी इंतज़ार में हूँ।
इक तलवार उठी है मुझ पे, ढाल तलक कब आएगी?
【प्रणय प्रभात】
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)