#देसी_ग़ज़ल / #नइयां
#तेवरी
■ जानी ही है आनी नइयां।।
(चोर कम्पनी और संरक्षक तंत्र में शामिल सफेदपोशों के नाम जनाक्रोश की मुखर अभिव्यक्ति)
【प्रणय प्रभात】
● बिजली मैया आनी नइयां।
पीवे तक को पानी नइयां।।
● दिन पहले से झुलस रहे हैं।
रातें तलक सुहानी नइयां।।
● ना बारिश, ना झूले दीखें।
मुट्ठी में गुड़-धानीं नइयां।।
● बिल पूरा पर पावर आधा।
बोलो ये मनमानी नइयां?
● ज़ोरो का झटका धीरे से।
ये हरकत तूफ़ानी नइयां?
● लतिया के बैठी है जनता।
ज़्यादा बात पुरानी नइयां।।
● चोर-लुटेरे दिन में लूटें।
मुखिया की नादानी नइयां?
● जित्ते समझदार सब माने।
बात मेरी बचकानी नइयां।।
● मेरा सच हिंदुस्तानी है।
अफ़गानी, ईरानी नइयां।।
● लू उतार देते सब मिल के।
खैर मना जो ठानी नइयां।।
● शकुनी जैसी कुटिल झाँसेबाज़ी।
अब काहू को भानी नइयां।।
● जा सूरत के बल पे सत्ता।
जानी ही है आनी नइयां।।
(आख़िरी शेर ज़हन में बिठा लें बस। शुक्रिया)
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)