देश लूटने का दर्द
एक पत्ते से पूछो उसके टूटने का दर्द
ज़िंदगी में अपनों का साथ छूटने का दर्द
ये वतन नहीं बिकने दूँगा मेरा वादा है
बेच वो रहा सब कुछ समझो फूटने का दर्द
लुट रहे सभी देखो बोल कौन सकता है
अब सता रहा उसके देश लूटने का दर्द
पेट जो भरे सबका वो किसान भूखा है
भूख से भी ज्यादा है आस टूटने का दर्द
संत जितने ढोंगी थे अब सलाखों पीछे हैं
याद आ रहा उनको ऐश लूटने का दर्द