चुनाव और विकास
एक महानुभाव ने कहा —
‘देश में विकास नहीं हो रहा।
जिन्हें हम चुनकर भेजते हैं
वो विकास तो कर रहे हैं
लेकिन सिर्फ़ अपना …
कल थी एक कार
आज हैं चार-चार ।
जो कल रह रहे थे चौल में,
आज घूम रहे हैं बड़े-बड़े मॉल में ।
जो कहते हैं खुद को हमारा सेवक
उनके पुत्र-पुत्रियाँ हवाई जहाज में बैठकर
इंग्लैंड पढ़ने जा रहे हैं
और हम, जो कि उनके मालिक हैं,
अपने बच्चों की फीस भी नहीं भर पा रहे हैं ।
इतना सुनकर नहीं रोक पाया मैं खुद को,
मैंने उत्तर दिया —
हम कब चुनते हैं विकास करने वाले नेता को !
हमने कब चुना ईमानदार और लालचशून्य नेताओं को !
क्या हमने कभी अपना नेता ऐसा चुना,
जो करवा दे आपके यहाँ विकास ?
या फिर कोई ऐसा नेता,
जो अंधकार में ले आए प्रकाश?
इसका जवाब तो सिर्फ ये है कि —
हमने तो सिर्फ़ अपनी जाति का नेता चुना है,
जिसे अपनी जाति से वोट लेने तक ही मतलब है।
हमने तो सिर्फ़ मंदिर बनाने वाला और मंदिर तोड़ने वाला नेता ही चुना है,
जो अपने अपने खेमे को भड़काकर
सिर्फ़ वोट हासिल करना चाहता है ।
हमने कब रहने दिया लोकतंत्र को लोकतंत्र के जैसा?
हमने कब रहने दिया नेता को हमारा सेवक ?
हमने उसे हमारा मालिक खुद बना दिया है ।
हमने चुना तो सब कुछ
लेकिन हमारे चुनने में
कई गलतियाँ रहीं
इसी वजह से हमने ‘विकास’ को छोड़कर
सब कुछ चुन लिया ।
— सूर्या