देश प्रेम
करने दो हुंकार अब,बस मातृभूमि का सत्कार अब
बजने दो मृदंग,कर दो संखनाद अब,
भरो कुछ ऐसा ही दम्भ,कण कण में दिखे देश प्रेम का रंग,
चूल्हे हिले,भूचाल मानो,सर्वनाश की आहट पहचानो,
जीना सीखो और जीने दो कही छिंड जाये न धर्म-पाप की जंग ll
मृदुल चंद्र श्रीवास्तव