” देश प्रेम का भान इन्हें है ” !!
देश प्रेम का भान किसे है !!
नेताओं में जंग छिड़ी है ,
केवल कोरे सम्भाषण है !
वाद विवाद में पिसती सेना ,
रोज टूटते अनुशासन है !
सबके अपने स्वार्थ जुड़े हैं ,
कहाँ देश में प्राण बसे हैं !!
शिक्षित पीढ़ी लक्ष्य लघु है ,
रोज़गार तक पहुंच ये पाये !
सम्मुख जब परिवार खड़ा हो ,
देश की चिंता कहाँ सताये !
छोटी जिम्मेदारी ओढ़े ,
देश के प्रति मान बसे है !!
कलिकाओं में शौर्य जगा है ,
आया शोणित में उबाल है !
सैन्य वेश में बालाऐं अब ,
बनी शेरनी , उग्र चाल है !
परिवर्तन को रहें सहेजे ,
प्राणों में सम्मान बसे है !!
अलसायी जनता डूबी है ,
राग रंग है नये नये से !
भोग विलास और प्रमाद ने ,
फेंकें पाश कसे कसे से !
नई पीढ़ी को राह दिखायें ,
इसका अब अरमान किसे है !!
माँ का दूध कहाँ मिलता है ,
शिशु तरसने यहाँ लगे हैं !
संस्कारों ने बदली करवट ,
देश प्रेम अब कहाँ जगे है !
घुट्टी में जो मिलता था वह ,
माटी का अभिमान किसे है !!
कुछ माँओं ने जन्म दिये है ,
वीर ललन पाले पोसे हैं !
मातृ भूमि है बनी विधाता ,
पग पखार देते बोसे हैं !
गर्जन है हुँकार भरे हैं ,
देशप्रेम के गान बसे है !!
देशप्रेम का भान इन्हें हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )