देश की मुख्यधारा ही दोषपूर्ण
आजादी से पहले का हिंदुस्तान
संवैधानिक देश भारत से पहले
यह मुल्क कैसा रहा होगा
जब आजादी के 73वें वर्ष
सभ्यता, संस्कृतिवान्, सनातन
विश्व गुरु भारत की पोल.
अनेकता में एकता के सिद्धांत
पर सामाजिक विषमताएं दूर
करने की बजाय…
ऊपर ऊपर एक राष्ट्र, एक ध्वज
देशहित/राष्ट्रवाद के मुद्दे पर
वृक्ष की मूल पर नहीं.
पत्तों पर काम करता हुआ…
प्रतीत होता है.
आज भी हमें सभ्यता संस्कृति के नाम पर एक गुरु
मानना पड़ता है…वह हमें नित्यकर्म खाना, सोना, नहाना, पीना, विवाह, मुहूर्त, सीखायेगा ..ऐसे में कोई व्यक्तित्व की बात करे.
एक विवाद पैदा होगा
कुछ देशभक्त तथा देशद्रोही पैदा होंगे.
स्वावलंबन विकसित होना बेईमानी होगी.
समाज में पाखंड, अंधविश्वास, जाति, कुसंगतियों को
बंदर की भांति मरे हुये बच्चे को चिपकाये रखना…
मेरे देश समाज का ध्येय.
देश में प्रचलित मुख्यधारा में ही खोट है.
यहाँ इकट्ठा भीड़ सृजनात्मक नहीं परम्परा को बचाने की दौड़ में अग्रणी
एकबार सोचना अवश्य
विचारधारा को मुक्त होने तक सोचना जरूर.