देश की गम्भीर स्थिति
कुछ समय से लोगों के अन्दर सत्य के प्रति ही विद्रोह की एक लहर सी उठ खड़ी हुई है। राष्ट्र और स्वयं भारत माता छद्म राष्ट्रवादियों या कहा जाये धूर्त षणयन्त्रकारियों के चक्रव्यूह में इतनी बुरी तरह फस चुकी हैं की उनकी आत्मा कराह रही है, चारों तरफ अंधविश्वास, अविश्वास, भय और संदेह उत्पन्न कर एक नये राष्ट का निर्माण किया जा रहा जिसमें जनता असत्य, असुरक्षा, अशिक्षा और असंतोष से घुट रही है। जनता का अंर्तमन भविष्य में आने वाली हानियों से आगाह कर रहा है फिर भी लालच, स्वार्थ या भय बस आगे आकर कोई विरोध करने की हिम्मत नही कर पा रहा या जो देश के प्रति चिन्तातुर हो विरोध कर रहे हैं उनकी आवाज को तत्काल गुप्त तरीके से सदैव के लिए दबाया जा रहा है। लक्ष्मी के लालच में लोग अंधे होते जा रहे हैं।
पूरा देश बिका जा रहा है राष्ट्रीय सम्पतियों को खुलेआम नीलाम किया जा रहा है, देश की महारात्न कही जाने वाली कम्पनियाों की बोली लगवा दी गयी। आजादी के बाद पिछले सालों में विकास कर जो भी सार्वजनिक सरकारी संपत्तियों का निर्माण किया गया था उन सभी को विकास के नाम पर बेचा गया और बेचा जा रहा है। काले धन के नाम पर देश की गरीब जनता को कौआ बना दिया गया। 56‘‘ सरकार के नुमाइंदे जनता का अकूत धन ले कर विदेश भाग रहें हैं, और वहीं पर ऐशोंराम की जिन्दगी बिता रहे। सभी बैंक दीवालिया होने की कगार पर गये, वित्तीय संस्थान स्वाहा होते जा रहे। बाजारों के प्रतिष्ठानों पर पर्दे डल गए। आरबीआई रिक्त कर दी गई, वल्र्डबैंक का कर्ज पिछले 7-8 सालों से तिगुने से अधिक हो गया। लोग बेरोजगार हो रहें हैं, मंगाई आसमान छू रही, जनता भूखों मर रही, पूरे सरकारी तन्त्र विकलांग कर दिये गये, राष्ट्र के चारों स्तम्भ न्यायपालिका, व्यवस्थापालिका, कार्यपालिका और मीडिया मुजरा कर रहें हैं। चुनाव आयोग धृतराष्ट्र बनकर बैठा है। चारों तरफ छल, झूंठ, कपट और दंभ का बोलबाला है। फिर भी कुछ क्षद्म राष्ट्रवादी, अतिस्वार्थी अंधभक्त लोग अभी भी सत्ता विहीन पार्टियों को कोस रहें हैं। रेड़ी, ठिलिया और रिक्सा वालों आदि गरीबों का रोजगार शुरू होने का रोना रो रहें। वाह धन्य हैं मानव की बनाई मानवता, धन्य है वह ईश्वर, भगवान या प्रकृति जिसने पृथ्वी पर इतने घोर महास्वार्थी मनवों को प्रगट किया।
देश में धर्मोन्माद की यह कैसी आग फैलाई जा रही है की जो जल रहे हैं, जो झुलस रहें हैं उन्हीं को अपने नष्ट होने का अहसास नही हो पा रहा है, जनता में धर्मवाद, सम्प्रदायवाद, जातिवाद, परिवाद का मुखौटा पहनाया जा रहा है। जीववाद और मानवतावाद की धज्जियां उड़ई जा रहीं हैं। कोविड महामारी में मानवता ने नीचता की नग्नता पर ताण्डव किया, मानव आंगों का खुलेआम व्यापार किया जा रहा। इस कोविड वायरस ने मानव मतिष्क को भी प्रभावित किया है। ऐसा लगता है, सभी चेतना शून्य होकर, संवेदना और भावना शून्य होकर केवल और केवल अपने स्वार्थ की भूख मिटाने के लिए धरती पर बदहवास भटक रहें हैं। लोगों का विशाल व्यक्तित्व बस शरीर तक ही सीमित हो गया है। विचार अत्यधिक संकुचित होते जा रहे हैं। समष्टि की भावना केवल व्यष्टि के पिण्ड मात्र में ही समाहित होती जा रही है। उपकार और परोपकार रूपी भावना की नदियां सूख चुकी हैं। इस समय असत्य अपनी चरमसीमा पर तांडव कर रहा है।, अंधकार की आसुरी सक्तियों ने सत्य को कहीं घने बदलों की ओट में छिपा दिया। जनता असंतुष्ट, अप्रसन्न, खिन्न, और चिन्नभिन्न है। जनमानस को असत्य की आसुरी शक्तियों द्वारा सम्मोहित किआ जा रहा हा। यदि इसीतरह चलता रहा तो हम कहीं विश्वगुरू बनने की जगह विश्वहब्सी न बन जायें।
© “अमित”
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