देश का दुर्भाग्य
“देश का दुर्भाग्य ”
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एक समय था जब नेता आज़ादी की लड़ाई लड़ते थे
आज़ादी की लड़ाई में बच्चो को भी आगे करते थे
खुद ही रहकर सबसे आगे देते थे जान देश की खातिर
देश की खातिर तन मन धन सब कुछ कुर्बान करते थे
आज के नेता संसद के भीतर ही एक दुसरे से लड़ते हैं
उनके बच्चे ही उनकी जगह ले मंत्री और नेता बनते हैं
देश की खातिर जान देना बहुत दूर की बात है ‘कुमार’
रक्त चूस के गरीबों का बस अपना ही खजाना भरते हैं
लूटकर देश को कमाते अंधाधुंध काली धन और दौलत
ले जाकर विदेश काला धन स्विस खातों में जमा करते हैं
भगाते क्वात्रोची, दाउद, मोदी और माल्याओं को देश से
कोरी बातें कर निकल जाने के बाद सांप लकीर पीटते हैं
सरकारी धन पर पूंजीपति को ही मौज मिलती बस
ज़रूरतमंद और किसान यहाँ कर्जे के लिए मुंह तकते हैं
नेता अभिनेता पूंजीपति सब बातों से दरियादिली दिखाते
फसलों की सही कीमत नहीं देते अपने देसी किसानों को
विदेशों से आयात कर ऊंची कीमत पर अनाज मंगवाते है
मेरे देश के किसान यहाँ कंगाली में आत्महत्या करते हैं
पांच साल गुजार देते यूँ ही मस्ती और रंगरेलियों में
बेवकूफ हैं हम अगली बार दोबारा भी उन्ही को चुनते हैं
यहाँ जेल के कैदी को मतदान का अधिकार भी नहीं
जेल में बैठे अपराधी मंत्री, विधायक और सांसद बनते हैं
पुलिस के रोजनामचे में फरार घोषित हैं वो अपराधी
मेरी समझ से परे है फिर वो चुनाव का पर्चा कैसे भरते हैं
“सन्दीप कुमार”