देश का जबाज सैनिक
लघुकथा
” रेल अबाध गति से जा रही थी । मै दोस्त की बारात में भोपाल से पुणे जा रहा था। अहमदनगर से कुछ सेना के जवान सवार हुए , सभी बड़े मस्त मौला थे। हँसी मजाक का दौर चल रहा था अब मैं अपने को नहीं रोक सका और ऊपर वाली बर्थ से नीचे आ कर उनके साथ बैठ गया । जब मैने दोस्त की शादी कि जिक्र किया तब उनमें से एक रामशंकर ने कहा :
” ये दूरियां वाली शादी हमारे यहाँ नहीं होती हमारे यहाँ तो छत पर चढ़ कर बहूरिया को आवाज दो तो वो घर आ जाती है । ” बस एक गांव दो घर ” और सभी जोर से हँस दिये ।
उनमें से एक जवान दीनानाथ अभी भी गंभीर था । संभवतः उसकी आँखो की पौरो में आंसू थे ।
मुझसे नहीं रहा गया । मैने कहा :
” भाईसाहब आप इतने उदास और गंभीर क्यो है ? ”
वह बोले :
” कभी कभी कुदरत के खेल बड़े निराले होते है एक बार हम जम्मू डिविजन में तैनात थे मेरे साथ जगदीश भी
था । देवरिया का वह रहने वाला था । उसकी शादी पक्की हो गयी थी और छुट्टी भी मिल गयी थी । वह बहुत खुश था उसी रात उसकी माँ का फोन आया था । वह बोली थी :
” बेटा बस एक इच्छा है तूझे दूल्हा बने हुए देखना है , दुल्हन तो दो घर छोड़ कर है बैचारी मेरा काम निपटाने आ जाती है बहुत प्यारी है बहू छमिया ।”
तभी बाहर फायरिंग की आवाज आने लगी पूरी यूनिट को एलर्ट कर पोजीशन लेने को कहा गया ।
मैं और जगदीश केम्प के बाहर आए बाहर अंधेरा था सिर्फ गोलियों की रोशनी जुगनुओं की तरह चमक रहीं थी और आवाजें आ रही थी । यह आतंकी हमला था । वह अंदर केम्प में घुसना चाह रहे थे करीब पांच थे वह ।
गेट पर पोजीशन लिए मैं और जगदीश अपने आदमियों को कवर दे रहे थे तभी एक ग्रेनेट आ कर गेट से टकराया और जगदीश घायल हो गया फिर भी उसने हिम्मत नही हारी और हम सब ने मिल कर उन पाँचों को मार
गिराया । आपरेशन सफल रहा । जगदीश को अस्पताल ले जाया गया लेकिन वह शहीदों में अपना नाम लिखवा चुका था ।
मैं उसके पार्थिव शरीर के साथ गांव आया । मजाल थी जो उस माँ की आँखो में एक भी आँसू आया ।
छमिया जरूर एक कौने में गुमसुम खड़ी थी ।
माँ , छमिया का हाथ पकड़ कर आगे आई और बोली :
” बेटी , मेरे बेटे जगदीश से तू जुड़ी थी अब मैं मुझे उससे मुक्त करती हूँ तूझे देश को सैनिक देना है इसलिए तूझे ब्याह तो करना ही है । ”
जगदीश की माँ और छमिया ने जगदीश को मुखाग्नि दी ।
छमिया ने जगदीश को सलूट किया और मेरे सीने से लग कर रोने लगी । जगदीश की माँ भी आ गयी और अपने दिल का गुबार निकल जाने के बाद सभी की सहमति से छमिया का ब्याह मेरे साथ कर दिया ।”
अब मैं गाँव ही जा रहा हूँ और वहां जगदीश की माँ , छमिया और हमारा बेटा जीत इन्तजार कर रहा है । बड़ा बहादुर है और हमारे देश का एक और सैनिक । ”
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल