देशभक्ति
” पापा मुझे भी तिरंगा झंडा दिलवाओ ना , कल स्कूल में सब बच्चों के लिए मुझे ही ले जाना है। ”
मनीष ने कहा ।
” हाँ बेटा चलो अभी दिलवा देते हैं।”
रमेश ने कहा, वो उसी स्कूल में अध्यापक हैं।
बाजार में कई बच्चे तिरंगा झंडे बेच रहे थे ।
रमेश ने एक बच्चे को झंडा लेने के लिए बुलाया
वह मुफ्त में दे रहा था ।
रमेश को आश्चर्य हुआ और नाम पूछा :
तब उस बच्चे ने अपना नाम सुमित बताय और उसने कहा :
” साहब मैंने यह घर पर ही
बनाये हैं । ”
तभी मनीष ने कहा :
” पापा हम यह सभी तिरंगे झंडे ले लेते हैं ”
और सब झंडे ले लिये और सुमित को स्कूल आने का निमंत्रण दिया ।
26 जनवरी को मनीष और सुमित को ले कर स्कूल आये और सुमित के झंडे सब बच्चों को बांटते हुए सुमित के देशभक्ति के काम को सब लोगों को
बताया ।
प्राचार्य ने सुमित के काम को सच्ची देशभक्ति बताया और सब बच्चों को देश के लिए कुछ न कुछ करने का संकल्प दिलवाया । जिसमें ईमानदारी, मेहनत और लगन से पढ़ाई करने और बड़े हो कर अपने काम को ईमानदारी से करने के लिए कहा ।
जिसकी सभी बच्चों ने शपथ ली ।
रमेश ने बताया :
” देशभक्ति एक जज़्बा है , देश के लिए हम जो भी अच्छे काम करेंगे वह एक उदाहरण होगा और देश के लिए हमारा योगदान होगा ।”
अगले दिन सुमित के देशभक्ति के काम सभी समाचार पत्र में छपे और कलेक्टर साहब ने सम्मानित किया ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव