देशभक्ति
राष्ट्रभक्ति राह में देशी मिले;
इस राह नहीं, शिकवे गिले;
राष्ट्र रक्षित,जब फूल खिले;
कुपित हैं ,जो स्वार्थ में पले।
‘देशभक्ति’, अंधभक्ति नहीं;
बाकी भक्ति में, शक्ति नहीं;
कोई किसी का, भक्त नहीं;
राजा से कोई, सशक्त नहीं।
चेहरा यहां , बस मुखौटा है;
कमल तो, सबका चहेता है;
यही, सबका राष्ट्रीय पुष्प है;
इसे थामने में, नहीं नुस्क है।
खुद मिटो, पर देश बचाओ;
निज लोभ को, दूर भगाओ;
छोटे मोटे बहुत हैं, मुद्दे सारे;
हर देशी जन को, देश प्यारे।
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स्वहस्तलिखित सह मौलिक;
पंकज कर्ण
कटिहार।