*कैसे कह दूँ आजादी है 【गीत 】*
कैसे कह दूँ आजादी है 【गीत 】
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जब तक दंश गुलामी के ,कैसे कह दूँ आजादी है
(1)
अपमान-चिन्ह हर चार कदम पर अब भी हमें चिढ़ाते
सम्मान-बिंदु भारत के उपहासित अब भी कहलाते
अब भी दिखता हर कृत्य दासता वाला उन्मादी है
जब तक दंश गुलामी के ,कैसे कह दूँ आजादी है
(2)
तीर्थ देश के जो गौरव के शीर्ष प्रेरणादायक थे
जन-मन के प्रभु जहाँ विराजे जहाँ राष्ट्र के नायक थे
बसी उदासी सदियों से ज्यों उनके भीतर लादी है
जब तक दंश गुलामी के ,कैसे कह दूँ आजादी है
(3)
काश बोल पाता अतीत सदियों की व्यथा सुना जाता
क्रूर-कार्य असहिष्णु-सोच कट्टरता वाला बतलाता
लूटी गई स्वर्ण की चिड़िया ,भारत की बर्बादी है
जब तक दंश गुलामी के ,कैसे कह दूँ आजादी है
(4)
अपनी भाषा अपनी संस्कृति पूजा-गृह को खोया है
शौर्य महापुरुषों का संवत सत्य सनातन सोया है
मुँह मत खोलो चौड़ा ज्यादा ,लो हो गई मुनादी है
जब तक दंश गुलामी के ,कैसे कह दूँ आजादी है
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451