देशभक्ति गीत
देशभक्ति गीत
लावणी छंद पर आधारित
मातृभूमि पर न्योछावर अब, हमरो सुबहो-शाम रही।
जबतक सागर रही हिमालय, हिन्द देश के नाम रही।
वीरभूमि भारत के जननी, वीर पूत जनमावे ली।
माई माटी की रक्षा में, सीस दिहल सिखलावे ली।
रोवे बबुआ जब राती में, ठपकी की साथे-साथे-
भगत सुभाष क कथा सुनावें, लोरी नाहीं गावे ली।
दुश्मन खातिर दुश्मन जइसन, सदा बुरा अंजाम रही।
जबतक सागर रही हिमालय, हिन्द देश के नाम रही।
भारत की गौरव गाथा के, सुंदर लिखल कहानी बा।
राणा की भाला के आगे, अकबर माँगत पानी बा।
पीठी पर बबुआ के बन्हली, हाथे में तलवार रहे-
भारत के ऊ वीर शेरनी , झांसी वाली रानी बा।
गंगा-यमुना भागीरथी में, नीर बहत अविराम रही।
जबतक सागर रही हिमालय, हिन्द देश के नाम रही।
सियाचीन गलवान कारगिल, हर मोर्चा पर हार भइल।
भारत की ताकत के आगे , दुश्मन जब लाचार भइल।
कायर छुप के घात लगावे, चीन और पाकिस्तानी-
जब-जब रणभेरी बाजल हऽ, भारत के जयकार भइल।
सबसे ऊंँचा रही तिरंगा, जय-जय आठो-याम रही।
जबतक सागर रही हिमालय, हिन्द देश के नाम रही।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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