देशभक्ति ग़ज़ल
मुलाहिज़ा फरमाइए… देशभक्ति …ग़ज़ल
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मौत को दावत मैं दे हरबार सरहद पे खड़ा हूँ।
मौत सीने से लगाकर यार सरहद पे खड़ा हूँ।
लड़ रहा हूँ दुश्मनों सें है वतन महफूज़ तब ही।
त्याग कर मैं आज उनका प्यार सरहद पे खड़ा हूँ।
डर नहीं है खंजरों से मौत से डरता नहीं मै।
जिन्दगी से ठानकर मैं रार सरहद पे खड़ा हूँ।
हो वतन महफूज़ मेरा जिन्दगी देकर भले ही।
मौत से कर आज आँखें चार सरहद पे खड़ा हूँ।
है वतन से प्यार हमको डर नहीं है जोखिमों से।
किन्तु अपनो से हुआ बेजार सरहद पे खड़ा हूँ।
जल रहा हूँ देख कर जो साँप पलते आस्तीन में।
आज अपनो से भला क्यों हार सरहद पे खड़ा हूँ।
दे रहे है घाव अपने भारती के लाल ही जो।
आज इनको मैं ‘सचिन’ दुत्कार सरहद पे खड़ा हूँ।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’