“देशद्रोही” कविता
देश में कब तक देशद्रोहियों को बक्षते रहेंगे
अब तक जो आतंकी हमले हुए हैं
वह दिल दहलाने के लिए काफी नहीं है
फिर उन साजिशों को वीर सैनिक ऐसे ही बर्दाश्त करते रहेंगे
पुलवामा में वार करने की रणनीति में
देशद्रोही कितने निर्दयी बन जाते हो
अपने प्राणों को बचाते हो
सैनिकों की आहुति देते हो
अरे देशद्रोहियों वार ही करना है तो
पूरी तैयारी के साथ सामने से करते
पिछे से वार तो बुजदिल ही किया करते हैं
हमारे सैनिकों का लहु अब खाली नहीं जाएगा
उनके परिजनों का त्याग तो जोरों से रंग लाएगा
जब तक सैनिकों की हिम्मत और काबिलियत में है दम
अब ईंट का जवाब पत्थर से देने का वक्त है
छोड़ त्याग और बलिदान के गम
गमों को तो कभी भुलाया नहीं जा सकता
यह भी उतना ही सच है
मात्र भाषण देने श्रंदांसुमन अर्पित करना ही काफी नहीं है
देशद्रोही का पता लगाकर उसको सजा दिलाना और लहु का बदला लहु हो
यह भी सौ आने सच है ।
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक कविता