देव सरिता
एक बार मैने देखा
कितना कोमल कितना पावन ।।।।।।
हे मंद मंद कहीं तेज
कंही प्रलयकारी कंही सुखदायी।।।।।।
हे कोख हिमालय से निकली
कोमल कोमल विटपो की छाँव में।।।।।।।।।
चलती जाती हमेशा
जो राह मिले उसको ले जाती।।।।।।
क्लांत कभी होती है क्या
रूकती नही कभी ये क्या।।।।।।
जो साथ चले वो न चल पाये
दौड के भी न पकड पाये।।।।।।
होते आने से सब सुखदाई
पेड पौधे पशु सब मुस्काई।।।।।।।
मैदानो में जब आये
कृषको के लिए खुशहाली लाये।।।।।।
करे सभी वन्दना हम
जग हित कारी सरिता हो तुम।।।।।।।