देव यहीं बन जाओगे
धोखा देकर हँसने वालो,तुम सुख से ना जी पाओगे।
आग लगेगी खुद के घर में,तुम पानी भी ना पाओगे।।
लाचारी पर हँसना छोड़ो,
अपनो से तुम मुँह ना मोड़ो,
काल बदलता ही रहता है,
लालच के मद में ना दौड़ो,
ऊपर जाकर नीचे आना,तुम कब तक हँस ठुकराओगे।
चक्र-समय का एक पहेली,क्या शून्य हुए सुलझाओगे?
पल के बाद नया पल होगा,
कल के बाद नया कल होगा,
हाथ तुम्हारे क्या मौसम है?
सूखे थल पर भी जल होगा,
दर्पण देखो खुद ही पहले,देख धरातल पर आओगे।
गोताखोर बनोगे मोती,तब सागर तल से लाओगे।।
अच्छाई की हार नहीं है,
झूठे का उद्धार नहीं है,
दूध-उफान बुराई मानो,
सहे बूँद का वार नहीं है,
दीप बनो तुम राह दिखाओ,सबके ही मन को भाओगे।
बुझने के बाद अँधेरों में,याद हमेशा तुम आओगे।।
चंदन जितना घिसता जाए,
तेज़ सुगंधी देता जाए,
मानव जितना है काम करे,
उतना ख़ूब निखरता जाए,
साथ करो तुम हाथ मिलाओ,रिश्तों का फल फिर पाओगे।
कथनी-करनी एक बनेगी,देव यहीं तुम बन जाओगे।।
–आर.एस.प्रीतम
सर्वाधिकार सुरक्षित रचना(c)