देव घनाक्षरी (मेघनाद हनुमान संवाद)-गुरू सक्सेना
देव घनाक्षरी
33 वर्ण 8-8-8-9 पर यति
अंत में नगण अनिवार्य
मेघनाद हनुमान संवाद
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धधके हिया में आग,मेघनाद आया बाग,
रहा कटु शब्द दाग क्रोध में उबल उबल।
होके एक मरकट,बनत सुभट भट,
बचा प्राण झटपट, रे कपि संभल संभल।
इस डार उस डार, कूद कूद बार बार,
जातुधान मार मार किलका उछल उछल।
मन में भरी है टीस,अब काटूँ तेरा शीश,
देखूँ कैसा जोद्धा कीस,लड़ले मचल मचल।
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देव घनाक्षरी
सिंहावलोकन
33वर्ण 8-8-8-9पर यति
अंत में नगण अनिवार्य ।
हनुमान मेघनाद
भड़क के हनुमान, बोले शठ जातुधान,
तेरी नीच खानदान, बताऊँ कड़क कड़क।
कड़क आवाज मेरी, मानों काल घटा घेरी,
सुन भागी सेना तेरी,युद्ध से छड़क छड़क।
छड़क अभागे भागे,फिर नहीं आए आगे,
कई डर प्रण त्यागे,सुनके तड़क तड़क।
तड़क बादल सम,तेरी है डरें न हम,
सूर्य से टिके न तम,भिड़ ले भड़क भड़क।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश